स्वामी के प्रेम का परिमाप
स्वामी किस तरह
कितना
तुम्हें प्रेम करते हैं,
उसका हिसाब-किताब
मत रखो,--
दूसरे के प्रेम से
उनके प्रेम की तुलना करके
क्षुब्ध मत होओ, --
जो पाओ,
उसमें उत्फुल्ल हो जाओ;
किन्तु देते समय
उनकी धातु और अवस्था समझकर
ऐसा दो,
जिसे उन्होंने कहीं भी पाया नहीं हो, --
और, पाकर कहीं से भी पाने की
आशा नहीं करें, --
देखोगी--
तृप्ति और आनंद
तुम दोनों के ही --
ख़रीदे गुलाम बने रहेंगे. |92|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारीनीति