रविवार, दिसंबर 07, 2008

प्रणय में संक्रमण

प्रेमास्पद के प्रति प्रणय ही दूसरों में प्रणय पैदा कर सकता है-- यदि उसका वांछित वही प्रेमास्पद होता है। 41
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

दान में तृप्ति ही प्रेम का निर्देशक

तुम पाती हो इसलिए वे तुम्हारे निकट आदरणीय हैं, उसकी अपेक्षा-- जहाँ देकर, अनुसरण कर-- कृतार्थ होओ, सार्थक समझो-- तुम्हारी भक्ति या प्रेम वहीँ है प्रकृत;-- और, उसके जरिये ही तुम्हारी उन्नति सम्भव है-- वह उन्नति तुम्हारे चरित्र को रंजित कर दे सकती है --निश्चय। 40
--:श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

सेवा में संश्रव

जहाँ तक जितना सम्भव हो-- सबों की ही सेवा करो-- किंतु उपयुक्त स्थान छोड़कर संश्रव में मत जाओ। 39
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

स्फुरित नारीत्व में पुरुष की उद्दीप्ति

नारी जितना ही अपने वैशिष्ट्य में मुक्त होगी-- पुरुष में वही संघात संक्रामित होकर पुरुषत्व को उतना ही उद्दाम और उन्नत कर देगा ; और पुरुष का पुरुषत्व जितना ही निर्मल और उन्मुक्त होगा, नारी में वही संक्रामित होकर उसके वैशिष्ट्य को सार्थक कर देगा ; प्रकृति और पुरुष की यही है प्रकृत लीला-- जिस लीला में भगवान मूर्तिमान होकर-- अपनी प्रकृति में अधिष्ठित रहते हैं ;-- यदि भोग करना चाहती हो, सार्थक होना चाहती हो, वैशिष्ट्य को लांछित न करो-- उन्नत करो। 38
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

छद्मवेश में काम

जब प्रणय ईर्ष्या को बुलाता है-- समझना होगा-- प्रकृत काम प्रेम का मुखौटा पहनकर खड़ा है। 37
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

सेवा से अपघात

सावधान रहो-- किसी की भलाई करने में दूसरे की भलाई को विध्वस्त नहीं करो,-- एक की सुख्याति करने में दूसरे की अख्याति नहीं करो, एक की सेवा करने में दूसरे के प्रति दृष्टिहीन नहीं हो; साधारणतः ऐसा ही होता है-- तुम किंतु इस ओर विशेष नजर रखो। 36
-- श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

शनिवार, दिसंबर 06, 2008

सेवा में लक्ष्मी

'लक्ष्मी' का अर्थ है श्री-- और यह 'श्री' शब्द आया है 'सेवा' करने से ; -- तुम यथोपयुक्त भाव से अपने संसार और संसार के पारिपार्श्विक का, जहाँ जितना सम्भव हो, वाक्य, व्यवहार, सहानुभूति, सहायता द्बारा दूसरे का अविरोध भाव से मंगल करने की चेष्टा करो, तुम्हारी लक्ष्मी-आख्या ख्यातिमंडित होगी-- देखोगी। 35
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

निद्रा

चेतन रहना भगवान का आशीर्वाद है, और, यह चेतना ही है जीवन ;-- तुम व्यर्थ में निद्रा को साध कर न लाओ,-- उतना ही भर सोओ -- जिसके फलस्वरूप-- और भी उद्दीप्त हो उठ सको। 34
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

संदेहयोग्य प्रेम

यदि प्रेम प्रेमास्पद की प्रतिष्ठा और याजना नहीं करता है, तो उस प्रेम पर संदेह कर सकती हो-- नजर रखो। 33
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

दुःख के प्रलाप

नियत दोष और दुःख की बातें मनुष्य को सहानुभूतिशून्य बना डालती हैं-- कारण, मनुष्य तुमसे दोष या दुःख नहीं चाहता, चाहता है जीवन, आनंद, यश और वृद्धि ; यदि वह नहीं पाता है, तो तुम्हारा, अपना कहकर कोई नहीं रहेगा-- हट जायेगा,-- बुझ जायेगा,-- देखोगी। 32
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

काम में काम्य

काम चाहता है अपने काम्य को अपने जैसा बना लेना-- वह सुखी होता है यदि काम्य अपनी सारी दुनिया को लेकर अपने को उसमें निमज्जित कर दे; काम किसी की ओर दौड़ना नहीं जानता-- अपने शिकार को आत्मसात् करने में ही उसे तृप्ति है,-- इसीलिये उसकी वृद्धि नहीं है-- जीवन और यश संकोचशील होता है-- मरण-प्रासाद में उसकी स्थिति होती है-- इसलिये, वह पाप, दुर्बलता, चंचल, अस्थायी एवं मरण-प्रहेलिकामय है; --समझकर देखो क्या चाहती हो ? 31
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

बुधवार, दिसंबर 03, 2008

प्रतिष्ठा में प्रेम

प्रेम या प्यार-- अपने प्रेमास्पद की पारिपार्श्विक एवं जगत में सिर्फ प्रतिष्ठा करके ही चैन नहीं लेता,-- वह और भी चाहता है--अपने जगत को व्यष्टि और समष्टि रूप से अपने प्रेमास्पद को उपहार देकर कृतार्थ होना ;-- उन्हें वहन कर, वृद्धि में अनुप्राणित कर-- अधीनता में तृप्ति और मुक्ति को आलिंगन करना;-- और ऐसा करके ही प्रेम अपने प्रिय को बोध, ज्ञान, कर्म, जीवन एवं ऐश्वर्य से प्रतुल कर देता है-- इसलिये, प्रेम इतना निष्पाप है --इतना वरणीय है। 30
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

अभिमान

अभिमान करना नारियों की एक विषम दुर्बलता है;-- जब मनुष्य की अभिलाषा व्याहत होती है, तभी अहं नत होकर, हीनता को अवलंबन करके अफसोस से सर टेकता है;-- और, अभिमान है इस अहं की ही एक तरह की अभिव्यक्ति ; इसलिये, अभिमान के सहज सहचर ही होते हैं ईर्ष्या, आक्रोश और अनुचित दुःख का बकवास, मामूली कारण को अधिक समझकर उसमें मुह्यमान होना, रोगेच्छा (will to illness), अपरिष्कृत और कुत्सित रहने का विचार (will to ugliness); सावधान होओ -- यह तुम्हें जहन्नुम में ले जानेवाले प्रकृत बन्धु हैं। 29
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति