एकमात्र प्रेम ही--
अपने प्रिय के जीवन, यश, प्रीति और वृद्धि को
उन्नति के पथ पर ले चलने के लिए
क्या करना होगा,
अविष्कार कर ;
उसे वास्तव में
परिणत कर सकता है; --
तुम
जिसे प्रिय
समझ रही हो--
तुम्हारे मन और मस्तिस्क की अवस्था
उस ढंग की हुई है या नहीं--
देख कर समझ सकोगी
तुम्हारे प्रेम में
खोटापन है या नहीं। 42
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति