--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति
शनिवार, मई 02, 2009
हल्कापन
अनेक नारी
संसर्गदोष से हो--
या
अनियंत्रित होने के फलस्वरूप हो --
न जाने कैसा एक हल्का चरित्र को पकड़े रखती है--
जैसे कोई बात ही हजम नहीं कर सकती;
वाक्य मानो मस्तिष्क में जाते ही
जाने कैसा एक अस्वच्छंद यंत्रणा पैदा कर देता है--
दूसरे के निकट उड़ेले बिना
कोई दूसरा रास्ता ही नहीं रहता,--
यह बड़ा बुरा अभ्यास है
इस अभ्यास ने
नारी-जगत में जितना अकल्याण किया है
यह दूसरे की तुलना में अत्यधिक है;-
यदि कोई तुम पर विश्वास कर
कुछ कह चुका है
और उसे प्रकाश में लाने पर
उसका या और किसी का अकल्याण होता है--
यदि तुम्हें प्रकाश में लाने के लिये
निषेध नहीं भी किया हो,
तो भी उसे किसी भी तरह प्रकाश में न लाओ;
और वह बात यदि ऐसी हो
जिसे प्रकाश किये बिना उसका या दूसरे का
अकल्याण अति निश्चय है,--
यदि उसे तुम कल्याण में
नियंत्रित नहीं कर सको--
तो ऐसे मनुष्य से कहोगी
जो उपयुक्त तरीके से
नियंत्रित कर सकें
तुम्हें ऐसा प्रतीत हो
एवं जिसने कहा है
उसका किसी तरह से अमंगल न हो;
इसमें भला ही होगा--
बहुत असुविधाओं के हाथों से
निष्कृति पाओगी,--
हिसाब से चलो। 63
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