नारी में पूर्वज
गर्व सहित स्मरण करो--
तुम्हारे अन्दर जो जीवन प्रवाहित हो रहा है,
वह तुम्हारे
पूर्वजों को वहन करके;
जिन्हें अर्ध्य देकर
तुम्हारे पूर्वज
प्रीत और प्रफुल्लित होते हैं, ऐसा सोचती हो,--
जिनके या जिस वंश के चरणस्पर्श से
वे धन्य होते हैं सोचती हो,--
तुम
नतजानु होकर
उनके ही चरणों में अवनत हो--
उनको ही वरण करो,--
उनको ही 'स्वामी' संबोधन करो; --
और, तुम्हारी ऐसी चिन्ता
और संबोधन के जरिये
उत्फुल्ल स्वर में तुम्हारे पूर्वज भी
मंगल वर्षण करेंगे !
निन्दित मत हो,
उन्हें वेदानाप्लुत न करो,
उदबुद्ध होओ -- उज्जवल होओ, --
वंश और जाति को उन्नत करो. |96|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, नारीनीति