वरण में विचार
वरण करते समय यह देखो--
स्वामी का आदर्श क्या है या कैसा है,
उनकी अराधना में
चेष्टा और कर्म की अग्नि में
अपने को आहुति देकर सार्थक होने का
प्रलोभन
तुम्हें प्रलुब्ध करता है या नहीं ;
और, तुम जिसे वरण करना चाहती हो,
वह उनके प्रति कैसा है और कहाँ तक है--
कारण, तुम उनकी सहधर्मिणी बनने जा रही हो
इसमें तुम यदि उदबुद्ध हो--
और, जाति, वर्ण, वंश, विद्या में --
यदि -- तुम्हारे जो वरणीय हैं--
वे सर्वतोभाव से तुमसे श्रेष्ठ हों--
एवं अपने पूर्वजों को अर्ध्यनीय समझकर
विवेचना करती हो--
तभी--उनको वरण करने पर
विपत्ति के हाथों से
बच सकोगी--
यह ठीक जानो. |73|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारीनीति