रविवार, नवंबर 02, 2008

गुप्त पुरुषाकांक्षा

जभी देखोगी पुरुष-संश्रव तुम्हें अच्छा लग रहा है-- अज्ञात भाव से कैसे, पुरुष के बीच जाकर, ग़प-शप में प्रवृत हो रही हो-- समझोगी-- पुरुषाकांक्षा ज्ञात भाव से हो या अज्ञात भाव से तुम्हारे अन्दर सर उठा रही है;-- यद्यपि स्त्री-पुरुष दोनों का ही प्रकृतिगत एक झोंक होता है एक दूसरे के संश्रव में आना-- फिर भी दूर रहोगी, अपने को सम्हालो,-- अन्यथा अमर्यादा तुम्हें कलंकित करने में बाज नहीं आएगी। 27
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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