जभी देखोगी
पुरुष-संश्रव
तुम्हें अच्छा लग रहा है--
अज्ञात भाव से कैसे,
पुरुष के बीच जाकर,
ग़प-शप में प्रवृत हो रही हो--
समझोगी--
पुरुषाकांक्षा
ज्ञात भाव से हो या अज्ञात भाव से
तुम्हारे अन्दर सर उठा रही है;--
यद्यपि
स्त्री-पुरुष दोनों का ही प्रकृतिगत एक झोंक होता है
एक दूसरे के संश्रव में आना--
फिर भी दूर रहोगी,
अपने को सम्हालो,--
अन्यथा
अमर्यादा
तुम्हें कलंकित करने में
बाज नहीं आएगी। 27
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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