मंगलवार, नवंबर 23, 2010

Varan-Purush Ki Naareelolupta

वरण-पुरुष की नारीलोलुपता

जहाँ देखो
वंश, वर्ण, विद्या इत्यादि में श्रेष्ठ होकर भी--
कोई पुरुष तुम्हें स्त्री रूप में पाने के लिये--
पागल हो उठा है--
उस पर संदेह करो,--
उसकी धातु (temperament)
या चरित्र में
ऐसी आविलता, अनैष्ठिकता और अस्थिरता
चोर की तरह
छिपी हुई है--
जिसे कोई आसानी से पकड़ नहीं सकता है,--
वह पुरुष तुममें आनत होने पर
तुम्हारी संतान-संतति
किसी तरह उत्तम नहीं होगी;--
तुम्हें शारीरिक रूप में वहन करता है
तो भी तुम ह्रदय से
विक्षिप्त रहोगी--
अतएव उसे लेकर
सुखी हो सकोगी या नहीं
इसमें संदेह है ;
ढल मत पड़ो--
अच्छी तरह पर्यवेक्षण कर लो--
विवेचना करो .   |75|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी नीति 

गुरुवार, नवंबर 11, 2010

Varan Ka Shresth Kshetra

वरण का श्रेष्ठ क्षेत्र 

वर्ण और वंशानुक्रमिकता के
आधार पर--
बोध, विद्या, चरित्र और व्यवहार
जहाँ पुष्ट और पवित्र है, --
वही है तुम्हारा वरण करने का
श्रेष्ठ क्षेत्र ;--
स्मरण रखो--
तुम्हारा प्रेम
जहाँ--
जिस रूप में
न्यस्त होगा--
फल का उदभव भी
वैसा होगा
संदेह नहीं है--
समझ-बुझकर चलो.  |74|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारीनीति

बुधवार, अक्तूबर 27, 2010

Varan Mein Vichaar

वरण में विचार 

वरण करते समय यह देखो--
स्वामी का आदर्श क्या है या कैसा है,
उनकी अराधना में
चेष्टा और कर्म की अग्नि में
अपने को आहुति देकर सार्थक होने का
प्रलोभन
तुम्हें प्रलुब्ध करता है या नहीं ;
और, तुम जिसे वरण करना चाहती हो,
वह उनके प्रति कैसा है और कहाँ तक है--
कारण, तुम उनकी सहधर्मिणी बनने जा रही हो
इसमें तुम यदि उदबुद्ध हो--
और, जाति, वर्ण, वंश, विद्या में --
यदि -- तुम्हारे जो वरणीय हैं--
वे सर्वतोभाव से तुमसे श्रेष्ठ हों--
एवं अपने पूर्वजों को अर्ध्यनीय समझकर
विवेचना करती हो--
तभी--उनको वरण करने पर
विपत्ति के हाथों से
बच सकोगी--
यह ठीक जानो.   |73|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारीनीति 

गुरुवार, अक्तूबर 07, 2010

Vivaah Mein Udvarddhan Aur Suprajanan

विवाह में उद्वर्द्धन और सुप्रजनन

विवाह
मनुष्य की
दो प्रधान कामनाओं की ही
परिपूर्ति करता है;--
इनमें एक है उद्वर्द्धन,

दूसरा है सुप्रजनन ;
अनुपयुक्त विवाह

इनदोनों को ही
खिन्न कर देता है ;--
सावधान !
विवाह को खिलौना मत समझो--
जिसमें
तुम्हारा जीवन
और जनन
जडित है.  |72|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, नारीनीति

मंगलवार, अक्तूबर 05, 2010

Varan Mein - Vanshaanukramiktaa

वरण में--वंशानुक्रमिकता

पुरुष का आदर्शानुराग
श्रद्धा और भक्ति से उत्पन्न होता है; --
जिनकी प्रेरणा पाकर,
कर्मानुष्ठान कर,
सेवा करके--
जिस बोध और ज्ञान की उत्पत्ति होती है,
वह संतान की मूलगत धातु में संक्रामित होकर
जो स्वभाव बनता है,
वही उसका आदिम संस्कार है !
उसका यह संस्कार ही
अपने पारिपार्श्विक से
वांछित उपकरण संग्रह कर
विवर्द्धित होते हुए
मनुष्य बनकर उठ खड़ा होता है; --
परन्तु, मनुष्य की उन्नति का मूल उपादान ही है
पुरुष-परंपरागत आदर्शानुराग से उदबुद्ध
यह वंशानुक्रमिकता (cultural heredity )
यह जहाँ श्रेष्ठ है--
वरण के मामले में वही अग्रगण्य और आदरणीय है
स्मरण रखो--
इस वरण और वंश की अवज्ञा करने से
सवंश जो तुम मरणयात्री होगी
उस विषय में और भूल कहाँ ?   |71|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी नीति

रविवार, अक्तूबर 03, 2010

Kalpana-Prahelika mein Swami Varan

कल्पना-प्रहेलिका में स्वामी-वरण 

जो लड़कियाँ स्वामी को
अपनी कल्पना के अनुसार पाना चाहती हैं,--
वास्तव में उदबुद्ध होकर
स्वामी को वरण नहीं करती हैं,--
वे
स्वामी के साथ
जितना ही परिचित होती हैं,
उतना ही निराश होती हैं;
अफशोस, दोषदृष्टि, जीवन में धिक्कार इत्यादि
उनके पार्श्वनुचर बनते हैं,--
अवसाद में अवसान होती हैं--
और, उस हतभाग्य पुरुष का भी
शेष निःश्वास
उसी प्रकार
मृत्यु में विलीन हो जाता है ;
भूल मत करो,
ऐसी मृत्यु को
आमंत्रित न करो.   |70|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी नीति

बुधवार, सितंबर 29, 2010

Naaree Mein Poorvaj

नारी में पूर्वज 

गर्व सहित स्मरण करो--
तुम्हारे अन्दर जो जीवन प्रवाहित हो रहा है,
वह तुम्हारे
पूर्वजों को वहन करके;
जिन्हें अर्ध्य देकर
तुम्हारे पूर्वज
प्रीत और प्रफुल्लित होते हैं, ऐसा सोचती हो,--
जिनके या जिस वंश के चरणस्पर्श से
वे धन्य होते हैं सोचती हो,--
तुम
नतजानु होकर
उनके ही चरणों में अवनत हो--
उनको ही वरण करो,--
उनको ही 'स्वामी' संबोधन करो; --
और, तुम्हारी ऐसी चिन्ता
और संबोधन के जरिये
उत्फुल्ल स्वर में तुम्हारे पूर्वज भी
मंगल वर्षण करेंगे !
निन्दित मत हो,
उन्हें वेदानाप्लुत न करो, 
उदबुद्ध होओ -- उज्जवल होओ, -- 
वंश और जाति को उन्नत करो.  |96|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारीनीति

मंगलवार, सितंबर 28, 2010

Chatukarita Mein Viparyay

चाटुकारिता में विपर्यय


अनेक नारी --
सौंदर्य की सुख्याति,
किसी कार्य में बहादुरी,
प्रशंसा, उपहार इत्यादि
स्त्री या पुरुष से -  विशेषतः
पुरुष से पाने पर--
उनके प्रति हठात
खूब ढल पड़ती है,--
तभी दुष्ट व्यक्ति
कायदा करके
जो चाहे उससे वही करा ले सकता है ;
तुम किन्तु सावधान हो जाओ--
चाहे सुख्याति में हो--
और, निंदा में हो--
निजत्व में अटूट रहकर
प्रयोजनानुसार जैसा अच्छा समझो
वैसा चलो--
कलंक से बचोगी.   |68|

--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

शुक्रवार, सितंबर 24, 2010

Kaam Pravriti Mein Swami Stree

काम प्रवृति में स्वामी-स्त्री 
सिर्फ काम प्रवृति 
कभी किसी को भी 
प्रकृत स्वामी 
या 
स्त्री 
बना नहीं सकती-- 
कभी संभव भी नहीं हुआ है |   |67|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी-नीति 

Var-varan Mein Asansrav

वर-वरण में असंस्रव 
यदि  उपयुक्त स्वामी लाभ करना चाहती हो--
पुरुष से दूर रहो--
किसी को भी
स्वामी के रूप में
मत सोचो,--
कारण,
इससे मन
कामलोलुप होकर
तुम्हारी दृष्टि को
अस्वच्छ कर देगा ; 
-- किन्तु जिन्हें स्वामी बनाना चाहती हो
उनके इष्ट, आचार, वंश, यश, स्वास्थ्य,
श्रद्धा, ज्ञान, इत्यादि
तुम्हारे
काम्य, सहनीय, और वहनीय हैं या नहीं--
अवलोकन करो
एवं 
मंगलाकांक्षी गुरुजन  के साथ
बातें करो,
प्राप्ति में
भ्रान्ति कम ही होगी |   |66|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारी-नीति  

Namyataa Mein Utkarsh

नम्यता में उत्कर्ष 
नारी-प्रकृति होती है नम्य-- 
इसलिये वह अच्छाई को भी 
अटूट भाव से 
लिपट कर पकड़ सकती है,
और यह पकड़ प्रकृत होने पर 
अव्यर्थ होती है-- 
दुनिया की उपेक्षा करके भी 
जिसे लिपट कर पकड़ी है, 
उसे लेकर 
अटल भाव से 
खड़ी रह सकती है ! 
जिनके द्वारा तुम्हारे जीवन, यश और वृद्धि  
क्रमोन्नति में परिचालित होते हैं-- 
ह्रास या सम की अवज्ञा करके भी  
उन्हें भी अटूट भाव से 
तुम लिपट कर पकड़े रहो-- 
उन्नयन तुम्हारा किसी प्रकार भी 
त्याग नहीं कर सकेगा-- 
यह अति निश्चय है  !   |65|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारी-नीति