वरण में--वंशानुक्रमिकता
पुरुष का आदर्शानुराग
श्रद्धा और भक्ति से उत्पन्न होता है; --
जिनकी प्रेरणा पाकर,
कर्मानुष्ठान कर,
सेवा करके--
जिस बोध और ज्ञान की उत्पत्ति होती है,
वह संतान की मूलगत धातु में संक्रामित होकर
जो स्वभाव बनता है,
वही उसका आदिम संस्कार है !
उसका यह संस्कार ही
अपने पारिपार्श्विक से
वांछित उपकरण संग्रह कर
विवर्द्धित होते हुए
मनुष्य बनकर उठ खड़ा होता है; --
परन्तु, मनुष्य की उन्नति का मूल उपादान ही है
पुरुष-परंपरागत आदर्शानुराग से उदबुद्ध
यह वंशानुक्रमिकता (cultural heredity )
यह जहाँ श्रेष्ठ है--
वरण के मामले में वही अग्रगण्य और आदरणीय है
स्मरण रखो--
इस वरण और वंश की अवज्ञा करने से
सवंश जो तुम मरणयात्री होगी
उस विषय में और भूल कहाँ ? |71|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी नीति
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