रविवार, अक्तूबर 03, 2010

Kalpana-Prahelika mein Swami Varan

कल्पना-प्रहेलिका में स्वामी-वरण 

जो लड़कियाँ स्वामी को
अपनी कल्पना के अनुसार पाना चाहती हैं,--
वास्तव में उदबुद्ध होकर
स्वामी को वरण नहीं करती हैं,--
वे
स्वामी के साथ
जितना ही परिचित होती हैं,
उतना ही निराश होती हैं;
अफशोस, दोषदृष्टि, जीवन में धिक्कार इत्यादि
उनके पार्श्वनुचर बनते हैं,--
अवसाद में अवसान होती हैं--
और, उस हतभाग्य पुरुष का भी
शेष निःश्वास
उसी प्रकार
मृत्यु में विलीन हो जाता है ;
भूल मत करो,
ऐसी मृत्यु को
आमंत्रित न करो.   |70|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी नीति

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