बुधवार, सितंबर 29, 2010

Naaree Mein Poorvaj

नारी में पूर्वज 

गर्व सहित स्मरण करो--
तुम्हारे अन्दर जो जीवन प्रवाहित हो रहा है,
वह तुम्हारे
पूर्वजों को वहन करके;
जिन्हें अर्ध्य देकर
तुम्हारे पूर्वज
प्रीत और प्रफुल्लित होते हैं, ऐसा सोचती हो,--
जिनके या जिस वंश के चरणस्पर्श से
वे धन्य होते हैं सोचती हो,--
तुम
नतजानु होकर
उनके ही चरणों में अवनत हो--
उनको ही वरण करो,--
उनको ही 'स्वामी' संबोधन करो; --
और, तुम्हारी ऐसी चिन्ता
और संबोधन के जरिये
उत्फुल्ल स्वर में तुम्हारे पूर्वज भी
मंगल वर्षण करेंगे !
निन्दित मत हो,
उन्हें वेदानाप्लुत न करो, 
उदबुद्ध होओ -- उज्जवल होओ, -- 
वंश और जाति को उन्नत करो.  |96|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारीनीति

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