वर-वरण में असंस्रव
यदि उपयुक्त स्वामी लाभ करना चाहती हो--पुरुष से दूर रहो--
किसी को भी
स्वामी के रूप में
मत सोचो,--
कारण,
इससे मन
कामलोलुप होकर
तुम्हारी दृष्टि को
अस्वच्छ कर देगा ;
-- किन्तु जिन्हें स्वामी बनाना चाहती हो
उनके इष्ट, आचार, वंश, यश, स्वास्थ्य,
श्रद्धा, ज्ञान, इत्यादि
तुम्हारे
काम्य, सहनीय, और वहनीय हैं या नहीं--
अवलोकन करो
एवं
मंगलाकांक्षी गुरुजन के साथ
बातें करो,
प्राप्ति में
भ्रान्ति कम ही होगी | |66|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी-नीति
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