शुक्रवार, सितंबर 24, 2010

Namyataa Mein Utkarsh

नम्यता में उत्कर्ष 
नारी-प्रकृति होती है नम्य-- 
इसलिये वह अच्छाई को भी 
अटूट भाव से 
लिपट कर पकड़ सकती है,
और यह पकड़ प्रकृत होने पर 
अव्यर्थ होती है-- 
दुनिया की उपेक्षा करके भी 
जिसे लिपट कर पकड़ी है, 
उसे लेकर 
अटल भाव से 
खड़ी रह सकती है ! 
जिनके द्वारा तुम्हारे जीवन, यश और वृद्धि  
क्रमोन्नति में परिचालित होते हैं-- 
ह्रास या सम की अवज्ञा करके भी  
उन्हें भी अटूट भाव से 
तुम लिपट कर पकड़े रहो-- 
उन्नयन तुम्हारा किसी प्रकार भी 
त्याग नहीं कर सकेगा-- 
यह अति निश्चय है  !   |65|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारी-नीति   

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