बुधवार, सितंबर 24, 2008

कन्या मेरी !

तुम्हारी सेवा, तुम्हारा चलन तुम्हारी चिंता, तुम्हारी कथनी, पुरूष-जनसाधारण में ऐसा एक भाव पैदा कर दे-- जिससे वे नतमस्तक, नतजानु हो, ससम्भ्रम, भक्ति गद गद कंठ से-- "माँ मेरी, जननी मेरी !" कहते हुए मुग्ध हों, बुद्ध हों, तृप्त हों, कृतार्थ हों, -- तभी तो तुम कन्या हो, --तभी तो तुम हो सती ! --: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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