भाव
भाषा को मुखर कर देता है--
पुनः, भाव ही
कर्म को नियंत्रित करता है,
और, भावना से ही भाव उदित होता है ;
अतएव
अपनी भावना को
जितने सुंदर, सुश्रृंखल, सहज, अविरोध
एवं उन्नत ढंग की बनाओगी--
तुम्हारी भाषा, व्यवहार, और कर्मकुशलता भी
उतनी
सुंदर अविरोध और उन्नत ढंग की होगी। 10
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति
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