धर्मकार्य का अर्थ है
वही करना--
जिससे
तुम्हारा और तुम्हारे पारिपर्श्विक का
जीवन, यश और वृद्धि
क्रमवर्द्धन से
वर्द्धित हो ;--
सोच, समझ, देख, सुनकर--
वही बोलो,--
और आचरण में
उसका ही अनुष्ठान करो,--
देखोगी--
भय और अशुभ से
कितना त्राण पाती हो। 7
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति
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