क्षिप्रता सहित दक्षता को साध लो,
और नजर रखो भी--
मनुष्य के प्रयोजनानुसार
हावभाव पर ;
और हावभाव को देखकर ही
जिससे
प्रयोजन को अनुधावन कर सको--
अपने बोध को इसी प्रकार तीक्ष्ण बनाने की
चेष्टा करो;
इसी प्रकार ही--
क्षिप्रता और दक्षता सहित--
मनुष्य के प्रयोजन को
अनुधावन कर
सेवा-तत्पर बनो, --
देखोगी--
सेवा का जयगान
तुम्हें परिप्लुत कर देगा। 3
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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