शुक्रवार, अक्तूबर 03, 2008

संतोष में सुख

अपने प्रयोजन को न बढ़ाकर मान-यश की आकांक्षा किये वगैर, सेवा-तत्पर रहकर सर्वदा संतुष्ट रहने के भाव को चरित्रगत कर लो ;-- सुख तुम्हें किसी तरह नहीं छोड़ेगा। 13
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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