एकानुरक्ति
वृत्तियों को
निरोध करके ;
तोड़कर--
ज्ञान में विन्यस्त कर देती है, --
और,
बहु-अनुरक्ति
वृत्तियों को
अधिक से अधिक बढ़ा करके
विवेक और विवेचनाशून्य
बना छोड़ती है ;-
अतएव,
बहु में आसक्ति
मूढत्व और मृत्यु का पथ
परिष्कार करती है,
और, एकानुरक्ति
अमृत को आमंत्रित करती है। 23
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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