सोमवार, अक्तूबर 13, 2008

एकानुरक्ति और बहु-अनुरक्ति

एकानुरक्ति वृत्तियों को निरोध करके ; तोड़कर-- ज्ञान में विन्यस्त कर देती है, -- और, बहु-अनुरक्ति वृत्तियों को अधिक से अधिक बढ़ा करके विवेक और विवेचनाशून्य बना छोड़ती है ;- अतएव, बहु में आसक्ति मूढत्व और मृत्यु का पथ परिष्कार करती है, और, एकानुरक्ति अमृत को आमंत्रित करती है। 23
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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