लज्जा जहाँ
पुरुष के मोह को आमंत्रित करती है--
वह लज्जा नहीं है--
दुर्बलता या दिखावटी भोलापन है ;
नारी की लज्जा यदि
पुरुष को
सश्रद्ध
अवनत और सेवा-उन्मुख कर दे,
वही लज्जा है
नारी का अलंकार ;--
भूल कर भी
लज्जा के नाम पर
दुर्बलता को
मत
बुलाओ । 19
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति
1 टिप्पणी:
सुंदर कविता स्पष्ट भाव सार्थक . बधाई स्वीकारें
समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारे और
पढ़ें उद्धव ठाकरे के बयां मुंबई मेरे बाप की पर एक रचना
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