शुक्रवार, अक्तूबर 10, 2008

लज्जा और संकोच

लज्जा जहाँ पुरुष के मोह को आमंत्रित करती है-- वह लज्जा नहीं है-- दुर्बलता या दिखावटी भोलापन है ; नारी की लज्जा यदि पुरुष को सश्रद्ध अवनत और सेवा-उन्मुख कर दे, वही लज्जा है नारी का अलंकार ;-- भूल कर भी लज्जा के नाम पर दुर्बलता को मत बुलाओ । 19
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति

1 टिप्पणी:

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सुंदर कविता स्पष्ट भाव सार्थक . बधाई स्वीकारें
समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारे और
पढ़ें उद्धव ठाकरे के बयां मुंबई मेरे बाप की पर एक रचना