शुक्रवार, अक्तूबर 10, 2008

स्वधर्म-लांछना

जभी पुरुष नारी के प्रति उन्मुख होकर- जो-जो लेकर नारी है उसे बटोर कर -- अपने को सजाना चाहता है-- और नारी जब पुरुषत्व का दावा करती हुई अपने वैशिष्ट्य की अवज्ञा कर और पुरुष के हाव-भाव का अनुकरण करती हुई वही दावा करती है-- मृत्यु-- तभी उसके जातीय आन्दोलन में उद्याम हो उठती है ;-- तुम अपने भगवान्-प्रदत्त आशीर्वाद-- वैशिष्ट्य को हत् श्रद्धा से लांछित न करो-- मृत्यु के उद्याम आन्दोलन को प्रश्रय न दो-- साध्य क्या है कि-- वह तुम्हें अवनत करे ? 20
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ब्‍लागजगत में आपका स्‍वागत है।

shama ने कहा…

Swagat hai aapka!
Ek namr sujhav de saktee hun?
Ye word verification hata den to achha hoga!

Amit K Sagar ने कहा…

बहुत बढिया जी.

शोभा ने कहा…

अच्छा लिखा है। ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।

हिन्दीवाणी ने कहा…

आपका स्वागत है। कोशिश करें कि आपका ब्लॉग नियमित हो और सामाजिक सरोकार को भी महत्व दें। चिट्ठा जगत परिवार के अन्य ब्लॉग को भी देखें, परखें और अपनी कीमची टिप्पणी से उनको नवाजें।

लोकेश Lokesh ने कहा…

आपका हिंदी ब्लॉग स्वागत में स्वागत है

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Swagat aapka blog parivar aur mere blog par bhi.
Pls remove unnecessary word verification.