अपनी दृष्टि, चलन, मुस्कान, वाक्य,
आचार, व्यवहार को
इस तरह से चरित्रगत करने की चेष्टा करोगी--
जो साधारणतः
पुरूष-वर्ग की ही
भक्ति, सम्भ्रम, श्रद्धा को आकर्षित करे--
इसलिए,
जभी देखो
कोई पुरूष
तुम्हारी ओर
कामलोलुप इशारा कर रहा है
तभी, अपने चरित्र को
छानबीन कर देखो
त्रुटि कहाँ है--
और ऐसा क्यों हो रहा है;--
यद्यपि दुर्बलचित्त पुरूष
ऐसा ही करते हैं,
किंतु तुम्हारे प्रति भय और सम्भ्रम ही
इसका उत्तम प्रतिषेधक है। 24
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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