शनिवार, अक्तूबर 18, 2008

बहिरिंगित चरित्रनुसंधान

अपनी दृष्टि, चलन, मुस्कान, वाक्य, आचार, व्यवहार को इस तरह से चरित्रगत करने की चेष्टा करोगी-- जो साधारणतः पुरूष-वर्ग की ही भक्ति, सम्भ्रम, श्रद्धा को आकर्षित करे-- इसलिए, जभी देखो कोई पुरूष तुम्हारी ओर कामलोलुप इशारा कर रहा है तभी, अपने चरित्र को छानबीन कर देखो त्रुटि कहाँ है-- और ऐसा क्यों हो रहा है;-- यद्यपि दुर्बलचित्त पुरूष ऐसा ही करते हैं, किंतु तुम्हारे प्रति भय और सम्भ्रम ही इसका उत्तम प्रतिषेधक है। 24
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

कोई टिप्पणी नहीं: