पिता या पितृ-स्थानीय गुरुजन,
उपयुक्त छोटे या बड़े भाई के साथ
खेल-कूद, गीत-वाद्य, उत्सव-भ्रमण
करना ही श्रेय है--
इसमें कुमारियों के लिये
विपदाओं की
संभावना कम ही रहती है--
सम्भव हो तो तुम इसी प्रकार से चलो;--
जब तक
ऐसा सामर्थ्य नहीं अनुभव करती हो--
जिसमें पुरुषमात्र ही
तुम्हारे निकट
सम्भ्रम से अवनत होगा ही। 25
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
2 टिप्पणियां:
ao bhai aapka rachna to achcha hai lekin aage bhi badiye!
खूब बताया आपने नारी धर्म महान.
लेकिन अब यह खो रहा, ऊँचा संस्कृति-ज्ञान.
ऊच्च- संस्कृति-ज्ञान, भारती की है विरासत.
इन्डिया को ना रास आती है दिव्य विरासत.
कह साधक ऋषियों ने त्याग का पाठ पढाया.
नारी धर्म महान आपने खूब बताया.
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