शनिवार, अक्तूबर 18, 2008

उत्सव-भ्रमण आदि में पुरुष-साहचर्य

पिता या पितृ-स्थानीय गुरुजन, उपयुक्त छोटे या बड़े भाई के साथ खेल-कूद, गीत-वाद्य, उत्सव-भ्रमण करना ही श्रेय है-- इसमें कुमारियों के लिये विपदाओं की संभावना कम ही रहती है-- सम्भव हो तो तुम इसी प्रकार से चलो;-- जब तक ऐसा सामर्थ्य नहीं अनुभव करती हो-- जिसमें पुरुषमात्र ही तुम्हारे निकट सम्भ्रम से अवनत होगा ही। 25
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

ao bhai aapka rachna to achcha hai lekin aage bhi badiye!

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " ने कहा…

खूब बताया आपने नारी धर्म महान.
लेकिन अब यह खो रहा, ऊँचा संस्कृति-ज्ञान.
ऊच्च- संस्कृति-ज्ञान, भारती की है विरासत.
इन्डिया को ना रास आती है दिव्य विरासत.
कह साधक ऋषियों ने त्याग का पाठ पढाया.
नारी धर्म महान आपने खूब बताया.