प्रेम या
भक्ति से जो उदभूत शिक्षा है--
वही
जीवन और चरित्र को रंजित कर सकती है;
और,
परश्रीकातरता,
ईर्ष्या और हीनबोध से
जिसका उदभव है--
वह मस्तिष्क में
ग्रामोफोन के रिकार्ड की तरह
स्मृति का चिह्न ही
अंकित कर सकती है ;
किंतु जीवन और चरित्र को
कम ही स्पर्श करती है। 18
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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