शनिवार, दिसंबर 06, 2008

काम में काम्य

काम चाहता है अपने काम्य को अपने जैसा बना लेना-- वह सुखी होता है यदि काम्य अपनी सारी दुनिया को लेकर अपने को उसमें निमज्जित कर दे; काम किसी की ओर दौड़ना नहीं जानता-- अपने शिकार को आत्मसात् करने में ही उसे तृप्ति है,-- इसीलिये उसकी वृद्धि नहीं है-- जीवन और यश संकोचशील होता है-- मरण-प्रासाद में उसकी स्थिति होती है-- इसलिये, वह पाप, दुर्बलता, चंचल, अस्थायी एवं मरण-प्रहेलिकामय है; --समझकर देखो क्या चाहती हो ? 31
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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