रविवार, दिसंबर 07, 2008

दान में तृप्ति ही प्रेम का निर्देशक

तुम पाती हो इसलिए वे तुम्हारे निकट आदरणीय हैं, उसकी अपेक्षा-- जहाँ देकर, अनुसरण कर-- कृतार्थ होओ, सार्थक समझो-- तुम्हारी भक्ति या प्रेम वहीँ है प्रकृत;-- और, उसके जरिये ही तुम्हारी उन्नति सम्भव है-- वह उन्नति तुम्हारे चरित्र को रंजित कर दे सकती है --निश्चय। 40
--:श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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