तुम पाती हो
इसलिए वे तुम्हारे निकट आदरणीय हैं,
उसकी अपेक्षा--
जहाँ
देकर, अनुसरण कर--
कृतार्थ होओ,
सार्थक समझो--
तुम्हारी भक्ति या प्रेम
वहीँ है प्रकृत;--
और,
उसके जरिये ही
तुम्हारी उन्नति सम्भव है--
वह उन्नति
तुम्हारे चरित्र को
रंजित कर दे सकती है
--निश्चय। 40
--:श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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