नारी
जितना ही
अपने वैशिष्ट्य में
मुक्त होगी--
पुरुष में
वही संघात संक्रामित होकर
पुरुषत्व को
उतना ही उद्दाम और उन्नत कर देगा ;
और
पुरुष का पुरुषत्व
जितना ही निर्मल और उन्मुक्त होगा,
नारी में वही संक्रामित होकर
उसके वैशिष्ट्य को
सार्थक कर देगा ;
प्रकृति और पुरुष की यही है प्रकृत लीला--
जिस लीला में
भगवान
मूर्तिमान होकर--
अपनी प्रकृति में अधिष्ठित रहते हैं ;--
यदि भोग करना चाहती हो,
सार्थक होना चाहती हो,
वैशिष्ट्य को लांछित न करो--
उन्नत करो। 38
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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