सेवासम्भोग में स्वामी
तुम्हारी
सेवा, भक्ति और प्रेरणा
तुम्हारे स्वामी-देवता को
उन्नति में जितना ही
आरूढ़ कर देगी, --
तुम्हारे निकट वे
उतना ही महान दिख पड़ेंगे--
-- और, यह
नित्य नूतन रूप में---
नवीन भाव से ; --
इसीलिये
तुम भी इस प्रकार--
उनको नवीन बनाकर
नित्य नूतन उपभोग के द्वारा--
अज्ञात भाव से--
किस प्रकार दुनिया के निकट---
महीयसी, गरीयसी, मंगलरूपिणी बनकर
आराध्या बन जाओगी --
समझ भी नहीं सकोगी. |86|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारीनीति
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