विवाह में वयस का पार्थक्य
जिसे पति वरण करने की
सम्भावना है--
उसे
सिर्फ बन्धु की तरह मत सोचो,
वरन सोचो--
देवता की तरह,
आचार्य की तरह;
भाव और वयस का नैकट्य
मनुष्य के
बोध और ग्रहणक्षमता का
दूरत्व बनाये रखता है ;--
इसीलिये---
स्वामी-स्त्री के वयस का पार्थक्य
पुरुष को जिस वयस में
प्रथम सन्तान हो सकती है
उतना ही
होना उचित है. |82|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारी नीति
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