स्वामी की धातु से परिचय
तुम्हारे स्वामी तुम्हें
पसन्द करें तो भी
उसकी धातु, अवस्था और प्रयोजन से
यदि परिचित न रहो,--
यदि बोध न करो,
वे तुमसे
आलाप-आलोचना, युक्ति और
मीमांसा से निराश होंगे ; --
तुम अपनी वार्त्ता में
वैसी प्रेरणा नहीं पाओगी,--
फलस्वरूप, उनके मन को
स्निग्ध शांत, तृप्त और
उदबुद्ध करने में
समर्थ नहीं होओगी,
दोनों ही क्रमागत
क्षुन्न होते रहोगे ;--
इसलिये, पुनः कहता हूँ --
तुम हर तरह से
उन्हें जान लो. |91|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारीनीति
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