विवाह में -- अनुलोम और प्रतिलोम
अनुलोम जिस प्रकार
उन्नत को प्रसव करता है,
प्रतिलोम उसी प्रकार ही
अवनति की वृद्धि करता है;--
इसीलिये
प्रतिलोम विवाह
ऐसा पाप है--
जो
अपने वंश को
ध्वंस में अवसान तो करता ही है, --
इसके अलावा
पारिपार्श्विक या समाज की भी
गर्दन पकड़ कर
विध्वस्ति की दिशा में
परिचालित करता है !--
असती स्त्री की निष्कृति
वरन संभव है,
किन्तु प्रतिलोमज हीनत्व का
अपलाप
अत्यन्त ही दुष्कर है. |80|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारी नीति
1 टिप्पणी:
Rajiv Ranjan ji Jai Guru
aapka kam abhutpurwa hai. Dhanybad
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