युवती के योग्य वर
युवती कन्या का --
यौवन का शेष
और प्रौढत्व का आरम्भ
ऐसे वयस का वर होना ही श्रेय है, --
इसमें
स्त्री की जीवनीशक्ति
पुरुष में संक्रामित होकर
और पुरुष की जीवनीशक्ति
स्त्री में संक्रामित होकर
एक समता उत्पादन करके
क्षय को दुर्बल बना सकती है ;
इसीलिये,
शास्त्र में है---
ऐसा विवाह
धर्म्म है
अर्थात , जीवन और वृद्धिप्रद है. |83|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारीनीति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें