वरण-सेवा और स्तुति के आग्रह से विवाह
आदर्शानुप्राणता
और सर्व प्रकार का श्रेष्ठत्व
तुम्हें श्रद्धा-भक्ति में
अवनत और नतजानु करके--
उनकी सेवा में
कृतार्थ करना चाहे--
हृदय से मुख में
जिनका स्तुतिगान
उपच उठे,
उन्हें तुम वरण कर सकती हो--
आत्मदान कर सकती हो,
उनका स्त्रीत्व लाभ करके
स्तुति और सेवा से
धन्य होओगी --
संदेह नहीं. |79|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारीनीति
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