बुधवार, नवंबर 16, 2011

Vivaah Mein Vayas Ka Paarthaky

विवाह में वयस का पार्थक्य 

जिसे पति वरण करने की
             सम्भावना है--
उसे
             सिर्फ बन्धु की तरह  मत सोचो,
वरन सोचो--
             देवता की तरह,
                     आचार्य की तरह;
भाव और वयस का नैकट्य
             मनुष्य के
बोध और ग्रहणक्षमता का
             दूरत्व बनाये रखता है ;--
इसीलिये---
            स्वामी-स्त्री के वयस का पार्थक्य
पुरुष को जिस वयस में
            प्रथम सन्तान हो सकती है
उतना ही
                                    होना उचित है.         |82|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारी नीति 

सोमवार, नवंबर 14, 2011

Prajanan-Niyantran Mein Naaree Ke Bhaav Aur Dayitw

प्रजनन-नियंत्रण में- नारी के भाव और दायित्व 

विवाह के अनेक प्रयोजनों में
     एक प्रधान प्रयोजन है
         सुप्रजनन,
और
       ऐसे सुप्रजनन को नियंत्रित करता है
             नारी का भाव--
                 जो पुरुष को उद्दीप्त कर आनत करता है ;
तभी
        नारी जिसे
              वहन कर, धारण कर
कृतार्थ और सार्थक होगी,---
        विवेचना करके
             ऐसे सर्वविषय में श्रेष्ठ,
       पुरुष के साथ ही परिणीत होना उचित है;
अतएव
       विवाह में पुरुष को वरण करने का भाव
          नारी पर रहना ही समीचीन
              प्रतीत होता है ;---
क्या ऐसी बात नहीं ?
         तुम्हीं विवेचना करके और गुरुजन के साथ
              बातें कर
                  अपना वर वरण करो.    |81|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारीनीति 

Vivaah Mein - Anulom Aur Pratilom

विवाह में -- अनुलोम और प्रतिलोम


अनुलोम जिस प्रकार 
  उन्नत को प्रसव करता है,
     प्रतिलोम उसी प्रकार ही
        अवनति की वृद्धि करता है;--
इसीलिये
   प्रतिलोम विवाह
       ऐसा पाप है--
   जो
अपने वंश को
    ध्वंस में अवसान तो करता ही है, --
       इसके अलावा
पारिपार्श्विक या  समाज की भी
     गर्दन पकड़ कर
         विध्वस्ति की दिशा में
             परिचालित करता है !--
असती स्त्री की निष्कृति
    वरन संभव है,
        किन्तु प्रतिलोमज हीनत्व का
अपलाप
               अत्यन्त ही दुष्कर है.   |80|  

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारी नीति 

शनिवार, नवंबर 12, 2011

Varan-Sewaa Aur Stuti Ke Aagrah Se Vivaah

वरण-सेवा और स्तुति के आग्रह से विवाह 

यदि किसी पुरुष की
आदर्शानुप्राणता
और सर्व प्रकार का श्रेष्ठत्व
तुम्हें श्रद्धा-भक्ति में
अवनत और नतजानु करके--
उनकी सेवा में
कृतार्थ करना चाहे--
हृदय से मुख में
जिनका स्तुतिगान
उपच उठे,
उन्हें तुम वरण कर सकती हो--
आत्मदान कर सकती हो,
उनका स्त्रीत्व लाभ करके
स्तुति और सेवा से
धन्य होओगी --
संदेह नहीं.    |79|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारीनीति 

Saarthak Vadhootw

सार्थक वधूत्व 

यदि तुम
किसी उपयुक्त --
जो हर तरह तुमसे श्रेष्ठ हैं
पुरुष को
इस प्रकार वहन कर सकोगी
विवेचना करती हो--
जिससे वे
जीवन, यश और वृद्धि से
किसी प्रकार अवनत न हों,--
तो
उनकी वधु बनो--
सती हो सकोगी--
गरिमामयी होगी.  |78|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र, नारी नीति 

शुक्रवार, नवंबर 11, 2011

Varenya-Varan

वरेण्य-वरण


पुरुष-जो सर्वप्रकार से ही
तुमसे श्रेष्ठ हैं--
और तुममें
जो तुम्हारे पूर्वज अधिष्ठित हैं
उनके वरेण्य हैं,--
जिनके साथ
आदर्श की आहुति बनने के प्रलोभन ने
तुम्हें--
सहन और वहन करने की उन्मादना में
उद्दाम कर दिया है--
तुम
उनकी ही वधु बनो--
सार्थक होओगी .  |77|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र, नारीनीति 

गुरुवार, नवंबर 10, 2011

Vivaah Mein Vahankshamataa

विवाह में वहनक्षमता 

प्रकृष्ट रूप में वहन करने को ही 
विवाह कहा जाता है ;
जो वहन करेगा 
(और यह वहन चाहे जितने रूप में हो सके)
यदि वह-- 
जिसे वहन करना है 
उससे सर्वप्रकार -- सर्वविषय में 
समर्थ न हो-- 
तो कैसे हो सकता है ?
जिन्हें तुम-- 
अपने को सर्वप्रकार 
वहन करने के लिये
प्रार्थना कर रही हो, 
वे तुम्हारी उस प्रार्थना की 
पूर्ति करने के 
उपयुक्त हैं या नहीं ; 
विवेचना करके 
अपने को दान करो,-- 
पतन, वेदना और आघात से उत्तीर्ण होगी   |76|  

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, नारी नीति