साधारणतः नारियों में देखा जाता है
स्वजाति के प्रति असहानुभूति और उपेक्षा,--
और
इसका अनुसरण करती है
दोषदृष्टि, ईर्ष्याप्रवणता, आक्रोश और
परश्रीकातरता ;--
और उसके फलस्वरूप--
दूसरे की अप्रतिष्ठा करने में
अपनी प्रतिष्ठा को भी
नष्ट कर डालती है;--
तुम कभी भी
ऐसा मत बनो,--
अन्याय का अनादर करके भी
बोध और अवस्था की ओर देखती हुई--
सहानुभूति और साहाय्य प्रवण हो, --
ख्याति
तुम्हारी परिचर्या करेगी-
संदेह नहीं। 43
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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