सर्वदा
शुचि और परिच्छन्न रहो,
तुम्हारा शरीर और चतुर्दिक मानो
सुसज्जित,
परिष्कार-परिच्छन्न रहे,-
मैला, दुर्गन्ध या बिखरे न रहें, --
सज्जित कर रखो--
देखते ही मानो
सुंदर और स्वस्ति का
अनुभव हो;--
इसका अर्थ यह नहीं कि
पाक-साफ़ रहने की सनक तुम पर सवार हो; --
देखोगी
स्वास्थ्य और तृप्ति
तुम्हें अभिनंदित करेंगे ;-
अशुचि और अपरिच्छन्नता --
पातित्यों में
ये भी कम नहीं हैं। 47
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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