सोमवार, अप्रैल 20, 2009

रूग्नावस्था

तुम जब रोगग्रस्त रहती हो जनसंसर्ग से जितना दूर सम्भव हो उतना दूर रहो; सम्भव हो तो अपने आपको उस प्रकार उपयुक्त तरीके से विच्छिन्न कर रखो-- जिससे दूसरों में तुम्हारा रोग, किसी प्रकार बिल्कुल संक्रामित न हो;-- सोने, बैठने, वार्तालाप इत्यादि में भी पैनी दृष्टि रखो-- उस संक्रमण की दिशा में ; और तुम्हारी सेवा-शुश्रूषा में जो लगे हुए हैं, सम्भव हो तो उन्हें भी समझा दो और नजर रखो-- वे पाक-साफ हुए बिना जनसंसर्ग में न जाएँ; देखोगी-तुम्हारी रोगग्रस्त अवस्था कटने पर पुनः नाना प्रकार से आक्रांत होने के भय और संभावना कम ही रहेंगे। 58
-- : श्री श्री ठाकुर, नारीनीति

कोई टिप्पणी नहीं: