सोमवार, अप्रैल 20, 2009

छद्मवेशी मातृभाव

अनेक दुर्बलचित्त, नीच चिंतापरायण पुरुष-- विशेषतः ऐसे युवकगण -- अपनी कामलोलुपता को भ्रातृत्व या संतानत्व का मुखौटा पहन कर -- माँ, मौसी, भाई, बहन इत्यादि संबोधन करते हुए नारियों के निकट पहुच कर हावभाव-आदर-प्यार से उन्हें वश में लाकर, -- स्तनपान, चुम्बन, लिपट कर धरने इत्यादि के माध्यम से -- अपनी नीच काम-प्रवृति को चरितार्थ कर लेते हैं-- जो उनकी मौसी है, बहन या गर्भधारिणी हैं उनके साथ वैसा बिल्कुल नहीं करते; सावधान होओ ऐसी माँ, मौसी, पुत्र भाई बननेवाले इत्यादि सम्बन्ध से,-- उसमें नारियां कामभाव में उद्दीप्त होकर ऐसे पुरुष के प्रति ढल पड़ती हैं-- फलस्वरूप आत्मबिक्रय करने को बाध्य होती है, गोपनता ही इनलोगों का उत्तम क्षेत्र है;-- इसीलिए वे प्रायः लोकजन से दूर हटकर रहना चाहते हैं,-- लोगों के निकट यह प्रमाणित करते हैं कि वे खूब साधु और आदर्श चरित्र के हैं;-- पारिपार्श्विक की आंखों से बचने के लिए दोनों एक दूसरे का प्रचार करते हैं,-- किंतु वस्तुतः उनके चरित्र में वैसी कुछ अच्छाई देखी नहीं जाती; जो भी हो पहले से ही सावधान हो जाओ;-- और, यदि भूलवशतः कुछ दूर अग्रसर हुई हो-- तो ऐसे लक्षण के देखते ही दूर हट जाओ; मन को संयत करो, पददलित कर उपयुक्त शिक्षा देकर उसे विदा करो-- समझ लो-- भेड़ियाँ भी उनसे अधिक चरित्रवान हैं। 59
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

1 टिप्पणी:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

नैतिक मूल्यों के पतन के चलते ये मात्र संबोधन ही रह गये हैं क्या इतना पतन हो चुका है मानव जाति का कि मां,बहन जैसे संबंध भी देहलोलुपता में प्रयोग करे जाने लगे हैं? कुत्सित है ये सब....
धिक-धिक-धिक
परिवार की धारणा बिखर रही है यदि ऐसा हो रहा है तो...क्या भाई, पिताजी और चाचा इत्यादि संबोधनों की आड़ में स्त्रियोचित चरित्र का भी व्यवहार पतनोन्मुख है या मात्र पुरुष वर्ग ही प्रभावित है इससे? उनका क्या जो न पुरुष हैं न ही स्त्री..... क्या वे चरित्र की स्थिर धारणा से परे हैं जैसे कि मेरी लैंगिक विकलांग बहन मनीषा नारायण और उनके ही जैसे अनेक बच्चे जैसे भूमिका रूपेश, दिव्या रूपेश,देवी रूपेश आदि????