शुक्रवार, अप्रैल 10, 2009

शिल्पव्रत

मुझे प्रतीत होता है, व्रतों में जिस व्रत का अनुष्ठान करना प्रत्येक नारी का अवश्य कर्त्तव्य है, -- वह है शिल्पव्रत ; ऐसे कुछ का अभ्यास करना चाहिये -- जिसे काम में लगाकर कम से कम तुम अपना-- असमर्थ होने पर अपने स्वामी, संतान-संतति इत्यादि के लिए अन्न, वस्त्र एवं आवश्यक जरुरतों का संस्थान कर सको ;-- तुम्हारी अवस्था यदि अभाव में नहीं भी रहे, तो भी अपने उपार्जन से संसार को उपहार स्वरूप कुछ देना ही उचित है ; -- इससे आत्मप्रसाद लाभ करोगी, दूसरे के सर का बोझ बने रहने का भय नहीं रहेगा ; अवज्ञा की पात्री नहीं बनोगी,-- आदर और सम्मान अटूट रहेगा ;-- 'शिल्प' का अर्थ किंतु श्रमशिल्प भी है-- और, इसके बिना लक्ष्मी का व्रत सम्भव है या नहीं, यह नहीं जानता ! 46
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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