तुम्हारी
साज-सज्जा, सुख इत्यादि
यदि किसी की
तृप्ति, तुष्टि से
उद् भव नहीं हुआ; --
और वह
यदि अन्य सभी को
तृप्त, पुष्ट या सुखी न बना दे,--
लाखों भोग तुम्हें
सुख-भोग में सुखी नहीं बना सकेंगे--
यह ठीक जान लो;
ऐसा बन्ध्या भोग
तुम्हें
और भी
ईर्ष्या, आक्रोश, अतृप्ति और
दुःख के देश में
ले जायेगा। 50
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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