आदर्शानुप्राणता
यदि तुम्हें
उद्याम कर देती है,
यदि तुम अपने हृदय में
उनके अलावे
और किसी को स्थान न दे सको,--
और,
यदि अपने
पारिपार्श्विक और जगत में
उनकी प्रतिष्ठा करने की उन्मादना
अटूट भाव से पकड़े रहे,--
प्रतीत होता है--
विवाह किए बिना भी
जीवन को पुण्य और पवित्रता से अतिवाहित कर
सभी को उज्ज्वल करके --
अपने को उज्ज्वलतर बना सकोगी;--
अपने-आपको समझकर देखो;
यदि कलुषिता देख पाती हो,
तो विवाह के लिए व्रती होना ही
तुम्हारे लिए श्रेय है। 60
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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