मंगलवार, अप्रैल 21, 2009

विवाह-परिहार

आदर्शानुप्राणता यदि तुम्हें उद्याम कर देती है, यदि तुम अपने हृदय में उनके अलावे और किसी को स्थान न दे सको,-- और, यदि अपने पारिपार्श्विक और जगत में उनकी प्रतिष्ठा करने की उन्मादना अटूट भाव से पकड़े रहे,-- प्रतीत होता है-- विवाह किए बिना भी जीवन को पुण्य और पवित्रता से अतिवाहित कर सभी को उज्ज्वल करके -- अपने को उज्ज्वलतर बना सकोगी;-- अपने-आपको समझकर देखो; यदि कलुषिता देख पाती हो, तो विवाह के लिए व्रती होना ही तुम्हारे लिए श्रेय है। 60
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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