अपने भाव या ढंग को
जितना ही भोगमुखर बनाये रखोगी,
प्रकृत भोग
तुमसे दूर रहेगा ;--
कारण,
भोगान्ध मन
किसी भी तरह नहीं समझ सकता है--
किसे लेकर
क्या देकर
किस प्रकार
भोगलिप्सा को
तृप्त करना चाहिये ;--
तुम्हारे प्रणय की धारा
यदि इस रूप में हो--
तुम
चिरकाल
अतृप्त रहोगी--
संदेह नहीं। 49
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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