बुधवार, अप्रैल 15, 2009

भोगान्धता

अपने भाव या ढंग को जितना ही भोगमुखर बनाये रखोगी, प्रकृत भोग तुमसे दूर रहेगा ;-- कारण, भोगान्ध मन किसी भी तरह नहीं समझ सकता है-- किसे लेकर क्या देकर किस प्रकार भोगलिप्सा को तृप्त करना चाहिये ;-- तुम्हारे प्रणय की धारा यदि इस रूप में हो-- तुम चिरकाल अतृप्त रहोगी-- संदेह नहीं। 49
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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