अनेक मिलकर एक पात्र में आहार न करो,
वरण
एक साथ आहार करो--
यदि आवश्यक समझो;
एक पात्र में आहार करने से
अनेक रोग संक्रामित होते हैं,--
ऐसा बहुधा देखा गया है;
इसके फलस्वरूप --
तुम रोगी होकर
सारे परिवार को भी रोगी बना दे सकती हो ;
जो स्वास्थ्य, आनंद और जीवन को
अवनत करता है, वही है पाप;--
इसीलिए
सुस्थ गुरुजन के सिवाय किसी के भी
जूठे भोजन को
हिन्दुओं ने-- हिंदू ही क्यों, वैज्ञानिकों ने भी--
विशेष रूप से निंदा की है। 56
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
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