शनिवार, अप्रैल 18, 2009

एक पात्र में आहार

अनेक मिलकर एक पात्र में आहार न करो, वरण एक साथ आहार करो-- यदि आवश्यक समझो; एक पात्र में आहार करने से अनेक रोग संक्रामित होते हैं,-- ऐसा बहुधा देखा गया है; इसके फलस्वरूप -- तुम रोगी होकर सारे परिवार को भी रोगी बना दे सकती हो ; जो स्वास्थ्य, आनंद और जीवन को अवनत करता है, वही है पाप;-- इसीलिए सुस्थ गुरुजन के सिवाय किसी के भी जूठे भोजन को हिन्दुओं ने-- हिंदू ही क्यों, वैज्ञानिकों ने भी-- विशेष रूप से निंदा की है। 56
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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