मंगलवार, अप्रैल 21, 2009

अधीन बोध में प्रेम

प्रकृत प्रेम या प्यार है चिरवहनशील, चिरसहनशील, -- इसलिए अपने प्रेमास्पद को निरवच्छिन्न भाव से सहन करता है-- वहन करता है,-- विरक्त नहीं होता, अवश नहीं होता, दुर्बल नहीं होता,-- वह अपने प्रेमास्पद को इस प्रकार सर्वतोभाव से सहन करता है और वहन करता है, और इस प्रकार सहन तथा वहन करने में ही उसे आनंद, उद्यम और उत्फुल्लता होता है इसीलिए सोच नहीं सकती है कि वह अपने प्रेमास्पद के अधीन में है, और, जहाँ ऐसा अधीन-बोध है, वहाँ काम की घृणामय दुर्गन्ध है जो वासना या इच्छा दबी थी-- उसके अभाव या पूरण में विद्वेषमूर्ती से बिच्छुरित हो रही है ठीक जानो। 61
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

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