मंगलवार, अक्टूबर 07, 2008

वैशिष्ट्योल्लंघनी शिक्षा

वैशिष्ट्य का उल्लंघन कर शिक्षा की अवतारणा करना-- और, जीवन को नपुंसक बनाना-- एक ही बात है। 17
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

शुक्रवार, अक्टूबर 03, 2008

शिक्षा की धारा

नारी को शिक्षित करने के लिये शिक्षा की धारा ऐसी होनी चाहिये-- जिससे वे वैशिष्ट्य में, वर्द्धनशील, उन्नति-प्रवण और अव्याहत हों ; -- तभी-- वह शिक्षा जीवन और समाज को धारण, रक्षण और उन्नयन में सार्थक कर सकती है। 16
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति

स्वमत-प्रकाश

जो नारी नत होकर, सम्मान सहित अपना मत प्रकाश करती है-- एवं उस विषय में किसी को भी हीन नहीं बनाती, वह-- सहज ही आदरणीया एवं पूजनीया होती है। 15
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति

कतिपय महत्-गुण

आदर्श में अनुप्राणता, सेवा में दक्षता, कार्य में निपुणता, बातों में मधुरता और सहानुभूति, व्यवहार में सम्वर्द्धना-- ये सभी महदगुण हैं। 14
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति

संतोष में सुख

अपने प्रयोजन को न बढ़ाकर मान-यश की आकांक्षा किये वगैर, सेवा-तत्पर रहकर सर्वदा संतुष्ट रहने के भाव को चरित्रगत कर लो ;-- सुख तुम्हें किसी तरह नहीं छोड़ेगा। 13
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

गुरुवार, अक्टूबर 02, 2008

परिजन में व्याप्ति

यदि यशस्विनी बनना चाहती हो-- अपने निजस्व और वैशिष्ट्य में अटूट रहकर पारिपार्श्विक के जीवन और वृद्धि को अपनी सेवा और साहचर्य से उन्नति की दिशा में मुक्त कर दो तुम प्रत्येक की पूजनीया और नित्य प्रयोजनीया होकर परिजन में व्याप्त होओ -- और ये सभी तुम्हारे स्वाभाविक या चरित्रगत हों । 12
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

चाह की विलासिता

जभी देखो-- तुम्हारे वाक, व्यवहार, चलन, चरित्र और लगे रहना तुम्हारी चाह को जिस प्रकार परिपूरित कर सकते हैं-- उसे सहज रूप से अनुसरण नहीं कर रहें हैं ; -- निश्चय जानो-- तुम्हारी चाह खांटी नहीं है-- चाह की केवल विलासिता है। ११
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति