बुधवार, अप्रैल 15, 2009

दोष का अनादर-दोषी का नहीं

दोष, अन्याय और अपवित्रता का अनादर करो,-- किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि जो ऐसा करते हैं उनका करो ;-- वे जिससे आदर, सहानुभूति और सेवा से-- तुम्हारे अन्दर स्थान पाकर, तुमसे मुग्ध होकर, तुम्हारी बातचीत से उन्हें अच्छी तरह पहचान कर इस प्रकार उन्हें छोड़ दे कि वे जिससे उनके सीमाने में भी झांकी नहीं मार सकें, -- धन्या होओगी और धन्य करोगी-- उनका आशीर्वाद तुम पर उपच पड़ेगा-- देखोगी। 48
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

सोमवार, अप्रैल 13, 2009

शुचि और परिच्छ्न्नता

सर्वदा शुचि और परिच्छन्न रहो, तुम्हारा शरीर और चतुर्दिक मानो सुसज्जित, परिष्कार-परिच्छन्न रहे,- मैला, दुर्गन्ध या बिखरे न रहें, -- सज्जित कर रखो-- देखते ही मानो सुंदर और स्वस्ति का अनुभव हो;-- इसका अर्थ यह नहीं कि पाक-साफ़ रहने की सनक तुम पर सवार हो; -- देखोगी स्वास्थ्य और तृप्ति तुम्हें अभिनंदित करेंगे ;- अशुचि और अपरिच्छन्नता -- पातित्यों में ये भी कम नहीं हैं। 47
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

शुक्रवार, अप्रैल 10, 2009

शिल्पव्रत

मुझे प्रतीत होता है, व्रतों में जिस व्रत का अनुष्ठान करना प्रत्येक नारी का अवश्य कर्त्तव्य है, -- वह है शिल्पव्रत ; ऐसे कुछ का अभ्यास करना चाहिये -- जिसे काम में लगाकर कम से कम तुम अपना-- असमर्थ होने पर अपने स्वामी, संतान-संतति इत्यादि के लिए अन्न, वस्त्र एवं आवश्यक जरुरतों का संस्थान कर सको ;-- तुम्हारी अवस्था यदि अभाव में नहीं भी रहे, तो भी अपने उपार्जन से संसार को उपहार स्वरूप कुछ देना ही उचित है ; -- इससे आत्मप्रसाद लाभ करोगी, दूसरे के सर का बोझ बने रहने का भय नहीं रहेगा ; अवज्ञा की पात्री नहीं बनोगी,-- आदर और सम्मान अटूट रहेगा ;-- 'शिल्प' का अर्थ किंतु श्रमशिल्प भी है-- और, इसके बिना लक्ष्मी का व्रत सम्भव है या नहीं, यह नहीं जानता ! 46
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

व्रत और नियम

व्रत और नियम को त्यागो नहीं-- बल्कि क्यों करता है, किस प्रकार करता है, इसे करने पर क्या हो सकता है,-- अच्छी तरह समझ कर, जो तुम्हारे धर्म को अर्थात् जीवन, यश और वृद्धि को उन्नत करता है-- वही करो, अनुष्ठान करो-- उपभोग करोगी ही। 45
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

वाक्-नियंत्रण

अंततः वाक् का यदि इस प्रकार व्यवहार करने का अभ्यास चरित्रगत कर सको-- जिससे मनुष्य के पास दुःख, अमंगल, असंतोष आ न पहुंचे-- तो देखोगी-- कितनी तृप्ति है, कितना संतोष है, कितनी सहानुभूति लाभ की अधिकारिणी हुई हो उसकी इयत्ता नहीं;-- आग्रह सहित इच्छा को आमंत्रित करो,-- अभ्यास में लग जाओ-- समर्थ नहीं होगी ?-- निश्चय समर्थ होओगी। 44
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

बुधवार, अप्रैल 08, 2009

स्वजाति-विद्वेष

साधारणतः नारियों में देखा जाता है स्वजाति के प्रति असहानुभूति और उपेक्षा,-- और इसका अनुसरण करती है दोषदृष्टि, ईर्ष्याप्रवणता, आक्रोश और परश्रीकातरता ;-- और उसके फलस्वरूप-- दूसरे की अप्रतिष्ठा करने में अपनी प्रतिष्ठा को भी नष्ट कर डालती है;-- तुम कभी भी ऐसा मत बनो,-- अन्याय का अनादर करके भी बोध और अवस्था की ओर देखती हुई-- सहानुभूति और साहाय्य प्रवण हो, -- ख्याति तुम्हारी परिचर्या करेगी- संदेह नहीं। 43
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

मंगलवार, मार्च 10, 2009

प्रेम में आविष्कार

एकमात्र प्रेम ही-- अपने प्रिय के जीवन, यश, प्रीति और वृद्धि को उन्नति के पथ पर ले चलने के लिए क्या करना होगा, अविष्कार कर ; उसे वास्तव में परिणत कर सकता है; -- तुम जिसे प्रिय समझ रही हो-- तुम्हारे मन और मस्तिस्क की अवस्था उस ढंग की हुई है या नहीं-- देख कर समझ सकोगी तुम्हारे प्रेम में खोटापन है या नहीं। 42
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति