मंगलवार, अक्टूबर 05, 2010

Varan Mein - Vanshaanukramiktaa

वरण में--वंशानुक्रमिकता

पुरुष का आदर्शानुराग
श्रद्धा और भक्ति से उत्पन्न होता है; --
जिनकी प्रेरणा पाकर,
कर्मानुष्ठान कर,
सेवा करके--
जिस बोध और ज्ञान की उत्पत्ति होती है,
वह संतान की मूलगत धातु में संक्रामित होकर
जो स्वभाव बनता है,
वही उसका आदिम संस्कार है !
उसका यह संस्कार ही
अपने पारिपार्श्विक से
वांछित उपकरण संग्रह कर
विवर्द्धित होते हुए
मनुष्य बनकर उठ खड़ा होता है; --
परन्तु, मनुष्य की उन्नति का मूल उपादान ही है
पुरुष-परंपरागत आदर्शानुराग से उदबुद्ध
यह वंशानुक्रमिकता (cultural heredity )
यह जहाँ श्रेष्ठ है--
वरण के मामले में वही अग्रगण्य और आदरणीय है
स्मरण रखो--
इस वरण और वंश की अवज्ञा करने से
सवंश जो तुम मरणयात्री होगी
उस विषय में और भूल कहाँ ?   |71|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी नीति

रविवार, अक्टूबर 03, 2010

Kalpana-Prahelika mein Swami Varan

कल्पना-प्रहेलिका में स्वामी-वरण 

जो लड़कियाँ स्वामी को
अपनी कल्पना के अनुसार पाना चाहती हैं,--
वास्तव में उदबुद्ध होकर
स्वामी को वरण नहीं करती हैं,--
वे
स्वामी के साथ
जितना ही परिचित होती हैं,
उतना ही निराश होती हैं;
अफशोस, दोषदृष्टि, जीवन में धिक्कार इत्यादि
उनके पार्श्वनुचर बनते हैं,--
अवसाद में अवसान होती हैं--
और, उस हतभाग्य पुरुष का भी
शेष निःश्वास
उसी प्रकार
मृत्यु में विलीन हो जाता है ;
भूल मत करो,
ऐसी मृत्यु को
आमंत्रित न करो.   |70|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी नीति

बुधवार, सितंबर 29, 2010

Naaree Mein Poorvaj

नारी में पूर्वज 

गर्व सहित स्मरण करो--
तुम्हारे अन्दर जो जीवन प्रवाहित हो रहा है,
वह तुम्हारे
पूर्वजों को वहन करके;
जिन्हें अर्ध्य देकर
तुम्हारे पूर्वज
प्रीत और प्रफुल्लित होते हैं, ऐसा सोचती हो,--
जिनके या जिस वंश के चरणस्पर्श से
वे धन्य होते हैं सोचती हो,--
तुम
नतजानु होकर
उनके ही चरणों में अवनत हो--
उनको ही वरण करो,--
उनको ही 'स्वामी' संबोधन करो; --
और, तुम्हारी ऐसी चिन्ता
और संबोधन के जरिये
उत्फुल्ल स्वर में तुम्हारे पूर्वज भी
मंगल वर्षण करेंगे !
निन्दित मत हो,
उन्हें वेदानाप्लुत न करो, 
उदबुद्ध होओ -- उज्जवल होओ, -- 
वंश और जाति को उन्नत करो.  |96|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारीनीति

मंगलवार, सितंबर 28, 2010

Chatukarita Mein Viparyay

चाटुकारिता में विपर्यय


अनेक नारी --
सौंदर्य की सुख्याति,
किसी कार्य में बहादुरी,
प्रशंसा, उपहार इत्यादि
स्त्री या पुरुष से -  विशेषतः
पुरुष से पाने पर--
उनके प्रति हठात
खूब ढल पड़ती है,--
तभी दुष्ट व्यक्ति
कायदा करके
जो चाहे उससे वही करा ले सकता है ;
तुम किन्तु सावधान हो जाओ--
चाहे सुख्याति में हो--
और, निंदा में हो--
निजत्व में अटूट रहकर
प्रयोजनानुसार जैसा अच्छा समझो
वैसा चलो--
कलंक से बचोगी.   |68|

--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

शुक्रवार, सितंबर 24, 2010

Kaam Pravriti Mein Swami Stree

काम प्रवृति में स्वामी-स्त्री 
सिर्फ काम प्रवृति 
कभी किसी को भी 
प्रकृत स्वामी 
या 
स्त्री 
बना नहीं सकती-- 
कभी संभव भी नहीं हुआ है |   |67|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, नारी-नीति 

Var-varan Mein Asansrav

वर-वरण में असंस्रव 
यदि  उपयुक्त स्वामी लाभ करना चाहती हो--
पुरुष से दूर रहो--
किसी को भी
स्वामी के रूप में
मत सोचो,--
कारण,
इससे मन
कामलोलुप होकर
तुम्हारी दृष्टि को
अस्वच्छ कर देगा ; 
-- किन्तु जिन्हें स्वामी बनाना चाहती हो
उनके इष्ट, आचार, वंश, यश, स्वास्थ्य,
श्रद्धा, ज्ञान, इत्यादि
तुम्हारे
काम्य, सहनीय, और वहनीय हैं या नहीं--
अवलोकन करो
एवं 
मंगलाकांक्षी गुरुजन  के साथ
बातें करो,
प्राप्ति में
भ्रान्ति कम ही होगी |   |66|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारी-नीति  

Namyataa Mein Utkarsh

नम्यता में उत्कर्ष 
नारी-प्रकृति होती है नम्य-- 
इसलिये वह अच्छाई को भी 
अटूट भाव से 
लिपट कर पकड़ सकती है,
और यह पकड़ प्रकृत होने पर 
अव्यर्थ होती है-- 
दुनिया की उपेक्षा करके भी 
जिसे लिपट कर पकड़ी है, 
उसे लेकर 
अटल भाव से 
खड़ी रह सकती है ! 
जिनके द्वारा तुम्हारे जीवन, यश और वृद्धि  
क्रमोन्नति में परिचालित होते हैं-- 
ह्रास या सम की अवज्ञा करके भी  
उन्हें भी अटूट भाव से 
तुम लिपट कर पकड़े रहो-- 
उन्नयन तुम्हारा किसी प्रकार भी 
त्याग नहीं कर सकेगा-- 
यह अति निश्चय है  !   |65|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारी-नीति