--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
शनिवार, अक्टूबर 18, 2008
उत्सव-भ्रमण आदि में पुरुष-साहचर्य
पिता या पितृ-स्थानीय गुरुजन,
उपयुक्त छोटे या बड़े भाई के साथ
खेल-कूद, गीत-वाद्य, उत्सव-भ्रमण
करना ही श्रेय है--
इसमें कुमारियों के लिये
विपदाओं की
संभावना कम ही रहती है--
सम्भव हो तो तुम इसी प्रकार से चलो;--
जब तक
ऐसा सामर्थ्य नहीं अनुभव करती हो--
जिसमें पुरुषमात्र ही
तुम्हारे निकट
सम्भ्रम से अवनत होगा ही। 25
बहिरिंगित चरित्रनुसंधान
अपनी दृष्टि, चलन, मुस्कान, वाक्य,
आचार, व्यवहार को
इस तरह से चरित्रगत करने की चेष्टा करोगी--
जो साधारणतः
पुरूष-वर्ग की ही
भक्ति, सम्भ्रम, श्रद्धा को आकर्षित करे--
इसलिए,
जभी देखो
कोई पुरूष
तुम्हारी ओर
कामलोलुप इशारा कर रहा है
तभी, अपने चरित्र को
छानबीन कर देखो
त्रुटि कहाँ है--
और ऐसा क्यों हो रहा है;--
यद्यपि दुर्बलचित्त पुरूष
ऐसा ही करते हैं,
किंतु तुम्हारे प्रति भय और सम्भ्रम ही
इसका उत्तम प्रतिषेधक है। 24
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
सोमवार, अक्टूबर 13, 2008
एकानुरक्ति और बहु-अनुरक्ति
एकानुरक्ति
वृत्तियों को
निरोध करके ;
तोड़कर--
ज्ञान में विन्यस्त कर देती है, --
और,
बहु-अनुरक्ति
वृत्तियों को
अधिक से अधिक बढ़ा करके
विवेक और विवेचनाशून्य
बना छोड़ती है ;-
अतएव,
बहु में आसक्ति
मूढत्व और मृत्यु का पथ
परिष्कार करती है,
और, एकानुरक्ति
अमृत को आमंत्रित करती है। 23
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
प्रकृत अवरोध और अवगुंठन
दु:शीलता का
अवरोध और अवगुंठन
मनुष्य का
विशेषतः नारी का
प्रकृत
अवरोध और अवगुंठन है। 22
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
सेवा में शैतान का इशारा
जो सेवा
तुम्हारे आदर्श को
अतिक्रम करती है
किंतु प्रतिष्ठा नहीं करती, --
वह
शैतान का इशारा है !
प्रलुब्ध होकर--
तमसा को
आलिंगन नहीं करो। 21
--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति
शुक्रवार, अक्टूबर 10, 2008
स्वधर्म-लांछना
जभी पुरुष
नारी के प्रति उन्मुख होकर-
जो-जो लेकर नारी है
उसे बटोर कर --
अपने को
सजाना चाहता है--
और
नारी जब
पुरुषत्व का दावा करती हुई
अपने वैशिष्ट्य की अवज्ञा कर
और पुरुष के हाव-भाव का अनुकरण
करती हुई
वही दावा करती है--
मृत्यु--
तभी
उसके जातीय आन्दोलन में
उद्याम हो उठती है ;--
तुम अपने भगवान्-प्रदत्त आशीर्वाद--
वैशिष्ट्य को
हत् श्रद्धा से लांछित न करो--
मृत्यु के उद्याम आन्दोलन को
प्रश्रय न दो--
साध्य क्या है कि--
वह तुम्हें अवनत करे ? 20
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति
लज्जा और संकोच
लज्जा जहाँ
पुरुष के मोह को आमंत्रित करती है--
वह लज्जा नहीं है--
दुर्बलता या दिखावटी भोलापन है ;
नारी की लज्जा यदि
पुरुष को
सश्रद्ध
अवनत और सेवा-उन्मुख कर दे,
वही लज्जा है
नारी का अलंकार ;--
भूल कर भी
लज्जा के नाम पर
दुर्बलता को
मत
बुलाओ । 19
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति
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